Saturday, July 12, 2008

भरोसे की आवाज


'बढ़ते जा रहे हैं जीने के साधन, सिकुड़ती जा रही हैं जीने की जगह' पंक्तियां हैं भरोसा ब्लॉग पर। एकाध पोस्ट छोड़ दें तो ब्लॉग कविता की भाषा में ही बोलता है। पोस्टकर्ता चाहे मन की बात कह रहा हो या समाज की बात या फिर अपने पेशेवर कर्म से जुड़ी कोई बात या याद, जो कुछ है सहज गद्य में है। गद्य भी ऐसा, जो पहली पंक्ति से आखिरी तक परत–दर–परत खुलता और उधेड़ता चले। कुछ गंभीर सरोकार जुदा रूप में पढ़ने हों तो भरोसा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम पर आया जा सकता है।

http://bharosa.blogspot.com/

2 comments:

Anonymous said...

bhut sundar.

Pooja Prasad said...

Dhanyawaad Rashmi.